राम कौन है l राम कौन है इससे पहले हम क्या है थोड़ा देख लेते है । इंसान को इस तरह से बनाया गया है जैसे उसको सभी चीजे भोगनी है । उसे अच्छा गाना सुनके कान से भोगना है । अपनी प्रशंसा सुनके मन से भोगना है। स्वादिष्ट व्यंजन को जीभ से भोगना है। इंसान भोगने के लिए ही जीता है। भोग भोग के आज तक किसी को भी सुख नही मिला सिर्फ दुख ही मिला है। भोगने की विरुद्ध अध्यात्म है। भोगना छोड़ देना मतलब ही अध्यात्म है । अध्यात्म का दूसरा नाम त्याग है। अध्यात्म बताता है अब तक आपको भोग भोग कर दुख ही मिला है अब थोड़ा त्याग कर के भी देखो। और इतिहास बताता है की जिस भी इंसान ने कुछ त्यागा है उसको सुख ही मिला है। राम जो व्यक्ती है उनके चरित्र का केंद्र बिंदु ही त्याग है। राम ही त्याग है। एक दासी के कहने पे माता भ्रष्ट बुद्धि से पिता से वरदान मांग लेती है और पिता भी धर्म संकट के कारण प्रिय पुत्र राम को चौदह वर्ष का वनवास भी दे देते है। और राम पुत्र धर्म का पालन करते हुए अपनी पिता की आज्ञा सर आंखों में रखते है। राम अपनी संपत्ति, सुख सुविधा और राज्य का त्याग करते है। जबकि राम गुणी है पराक्रमी है युवराज है पात्र है। जब राम वन जा रहे है तब वह पत्नी संग भी त्यागने के तैयार है जब की वे नवविवाहित है। राम सीता को कहते भी है की "आप यहा महल में रहिए मैं आपको वन के कष्ट में नहीं ले जा सकता". राम अपने प्यारे भाई लक्ष्मण को भी त्यागकर बोल रहे है " लक्ष्मण तुम यहां रहो अपने मां और पत्नी साथ , मेरे साथ मत आओ" जिस कैकई मां ने उनको वन भेजा । वन जाते समय राम सबसे पहले अपनी प्यारी मां कैकई का ही आशीर्वाद लेने गए। राम का मन कलुषित नही है क्योंकी राम ने घृणा को त्याग दिया। राम जानते थे कि यदि उन्होंने बाली से मदद मांगी तो राम बहुत सरलता से सीता को रावण से छुड़ा सकते है। परंतु बाली अधर्मी था । राम ने अधर्म का त्याग किया और सुग्रीव को समर्थन किया। युद्ध के बाद बिबिशन ने राम को बहुत उपहार दिए पर राम ने कुछ नही लिया। बहुत बिनती करने के पश्चात राम ने एक मोती का हार ले लिया और आपके प्रिय भक्त हनुमान को दे दिया।
राम ने सोने की लंका त्याग दी जबकि लंका बहुत प्रगत और सोने की थी। हम दो ग्राम सोना नही त्याग सकते यहां पे राम ने सोने की लंका त्याग दी। जब राम ने वापिस आकर रामराज्य की स्थापना की। कहते है की बकरी और बाघ एक ही घाट का पानी पीते थे। जब एक आदमी ने सीता पर सवाल उठाए तो राम ने अपनी परम प्रिय पत्नी को त्याग दिया। राजा राम ने हमेशा प्रजा को अपने घर वालोसे ज्यादा महत्व दिया। जिस पत्नी को राम वापस लाने के लिए लंका पैदल गए । जिस आदमी ने देवताओं को बंदी बनाया था उस लंकेश विरुद्ध बंदर की सेना लेके लढ़े। ऐसे पवित्र राम को अपनी सीता को वन में छोड़ते समय कितना दुख हुआ होगा। पर उस समय वे पति नहीं राजा थे। अपनी प्रजा के कारण उन्होंने सीता और अपनी दो संतानों को त्याग दिया। आज के दुनिया में कोई नेता है जो समाज के लिए अपने परिवार का त्याग करे I राम निष्ठावान है। जब सीता का हरन हुआ था और उनको पता भी नही था किसने हरन किया है तब भी वे सीता को ढूंढने निकल गए। जबकि राम युवराज थे । वे चाहते तो दूसरी रानी बना सकते थे। पर राम ने निष्ठा हीनता का त्याग और निष्ठा का स्वीकार किया। जब राम ने रावण को मारा तो रावण की आखरी सांसे चल रही थी। तब राम लक्ष्मण को बोलते है " जाओ लक्ष्मण रावण अपनी आखरी सांसे ले रहा है । रावण महापंडित है। बहुत बड़ा शिव भक्त है। जाओ रावण से कुछ ज्ञान की बाते पूछो" राम घृणा का त्याग सिखाते है। राम इतने पवित्र है की वो सबरी को भी अपनी माता बोलते है। राम के भाई भी राम के तरह ही। एक है लक्ष्मण जो अपने बड़े भाई राम और माता तुल्य सीता के लिए वनवास जाते है। और जब लक्ष्मण की पत्नी भी उनके साथ आने की इच्छा बताती है l तब लक्ष्मण कहते है "मैं वन में भैया राम की सेवा करूंगा और तुम यहां माता की सेवा करना" दूसरे है भरत। भरत ने चौदह साल तक राम की पादुका सिंहासन पर रखकर राज्य किया। और चौदह साल तक भरत वनवासी की तरह पहनाव और खाना रखा। जब तक राम वापस नहीं आए तब तक घास पर सोए। राम ऐसे ही है। जो भी उनके सानिध्य में आया। वह मन से शुद्ध हो गया। जब राम अयोध्या वापस आए । तो उनको पता था की रावण जैसा भी था लेकिन महापंडित और शिवभक्त था। राम ने शिवभक्त को मारा था। इसीलिए राम फिर एक साल वनवास जाते है। राम अपने युद्ध विजय का त्याग करते है। आज के दुनिया का आदर्श भोग है। आप अपने दस आदर्श की सूची बनाए उसमे आठ आपके आदर्श ऐसे है की जिन्होंने जिंदगी ने सिर्फ दुनिया को जी भरके भोगा है। और आप भी भोगना चाहते हो इसलिए तो वे आपके आदर्श है। राम बोध है त्याग है शुद्ध है जो सही है वही होगा फिर कितना भी दुःख हो। जय श्री राम By Pankaj Salunkhe
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